Dharmik Katha: भगवान् शालिग्राम और कसाई की अनोखी कहानी

Dharmik Katha: भगवान् शालिग्राम और कसाई की अनोखी कहानी
Dharmik Katha: भगवान् शालिग्राम और कसाई की अनोखी कहानी

Dharmik Katha: Welcome to my blogs! In this post we are going to write a Dharmik Katha .

Dharmik Katha शालिग्राम और कसाई की कहानी: दोस्तों में हम इस Post में भगवान् शालिग्राम और एक कसाई की कहानी लिख रहा हूँ. इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपको भगवान् का वात्सल्य प्रेम नजर आएगा .जैसे बड़े बड़े संत कहा करते है की भगवान् भक्त के बस में होते है या फिर भगवान् प्रेम के भूखे होते है . यह एक धार्मिक कहानी (Dharmik Katha ) है जो आपके अंदर उच्च संस्कार का निर्माण करती है .आपको इस पोस्ट को पढ़ने के बाद पता चल जाएगा .

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दोस्तों. इस वीडियो को पूरा देखें कहानी में भगवान् का भक्तों के प्रति प्रेम समझ में आ जाएगा . वीडियो अच्छा लगे तो एक लाइक भी कर दीजियेगा .

यह कहानी भगवान् शालिग्राम और एक कसाई की है . शालिग्राम भगवान् को विष्णु भगवान् का स्वरुप माना गया है . शालिग्राम भगवान पत्थर के रूप में होते है . और ये पत्थर नेपाल के तराई में बहने वाली गण्डकी नदी में पाए जाते है . ये शालिग्राम नाम का पत्थर उसी गण्डकी नदी में पाया जाते है .

शालिग्राम और कसाई की कहानी

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक सदन नाम का एक कसाई रहता था . वह ईमानदार और भगवान् का परम भक्त था . वह बिलकुल खुले दिल का था . वह छल कपट से बिलकुल परे थे . लेकिन वह बेरोजगार था . उसके पास कोई काम नहीं था. वह रोज-रोज काम की तलाश में इधर-उधर भटकता रहता था . लेकिन उसे कोई काम भी नहीं मिल रहा था . इसलिए उसमे कसाई का काम करने का निश्चय किया . क्योकि यह काम वह आसानी से कर सकता था . कसाई का काम होता है बकरे को काटना और उसके मीट को बेचना . लेकिन किसी भी जीव की हत्या करना उसने उचित नहीं समझा . इसलिए उसके उसने मीट को खरीदकर बेचने का निश्चय किया . इसी उधेड़बुन में वह सोचते हुए चला जा रहा था . तो उसके पैर से अचानक एक पत्थर टकराया . वह शालिग्राम पत्थर था . यानि वह पत्थर भगवान् शालिग्राम जी थे . उस कसाई ने उस पत्थर को यह सोचकर रख लिया की ग्राहकों के मीट बेचने के लिए वजन करने में में यह पत्थर वाट का काम करेगा .

वह कसाई बहुत ईमानदार और भगवान् का परम भक्त था . वह दिन भर भगवान् का नाम लेता रहता था तथा भजन-कीर्तन मन ही मन में गाकर खुश होता रहता था तो कभी उसके आँखों से आंसू बहने लगता था . लेकिन वह हरदम खुश रहता था . वह जब मीट भी काटकर बेचने का काम करता था तब भी वह भगवान् का भजन गाता रहता था .

Bhagwan shaligram aur kasai ki kahani

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थोड़े दिन के बाद सदन ने एक मीट बेचने की एक दुकान खोल ली और उसने रस्ते में पड़ा मिला उस पत्थर से वजन करने का काम करने लगा . उस कसाई को थोड़े ही दिन में उस पत्थर का चमत्कारी रूप नजर आने लगा . जैसे वह जितना वजन करना चाहता उतने वजन का वह पत्थर अपने-आप ही हो जाता था . मान लो अगर वह 1 किलो मीट तौलना चाहता है तो वह पत्थर अपने आप एक किलो का हो जाता . जब वह 2 किलो वजन करना चाहता तो वह पत्थर अपने आप 2 किलो का हो जाता . उस पत्थर के चमत्कारी प्रभाव की चर्चा चारो तरफ आग की भांति फ़ैल गई . लोग उसे देखने के लिए उस कसाई के दुकान पर जुटने लगे . और इस प्रकार उसके दुकान पर बहुत भीड़ रहती जिससे उसकी विक्री भी ज्यादा होने लगी .

साधु बाबा और शालिग्राम

एक बार एक साधु महात्मा उधर से होकर गुजर रहे थे . उसने अपने मुंह में कपडा बांध रखा था . और वह इधर उधर देखता भी जा रहा था . तो वह क्या देखता है की सदन कसाई शालिग्राम पत्थर से मीट तौल रहा है . उसे यह बिलकुल अच्छा नहीं लगा . वह महात्मा उस कसाई के पास जाकर बोला ये तुम क्या कर रहे हो . यह महा पाप है . आप भगवान् जी से मीट तौल रहे है . इतना गंदा काम कर रहे है . यह साक्षात् भगवान् शालिग्राम है . कसाई ने उस महात्मा की बात सुनकर बोला : महराज मुझे नहीं पता था , मुझसे गलती हो गई है . फिर उस महात्मा ने शालिग्राम जी को अपने साथ ले आये .

महात्मा जी ने शालिग्राम जी को लेकर आए और शुद्ध जल से स्नान करवाए फिर पंचामृत से स्नान करवाए .इत्र लगाए चन्दन लगाए और फूलों की हार पहनाकर उन्हें सोने के सिंहासन पर विराजमान कर दिए . फिर उनका विधिवत पूजा किये. कीर्तन किये और खीर बनाकर भोग लगाए . और बोला; कहा आप उस कसाई के यहाँ गंदा में रहते थे . यहाँ रहिये आराम से . इस तरफ उनके दिन कटने लगे . एक दिन उस महात्मा के सपने में भगवान् ठाकुर जी आए और कहने लगे . तुम मुझे वही कसाई के पास छोड़कर आओ. साधु ने भगवान् से पूछा : प्रभु वह गंदा आदमी है मीट बेचता है . वह आपको गंदे जगह पर रखता है . वह आपसे मीट तौलता है . में आपको वहां कैसे छोड़ दूंगा .

भक्त और प्रेम के बस में भगवान्

भगवान्भ बोले में जैसा कह रहा हूँ तुम वैसा करो सुबह होते ही तुम मुझे वही छोड़ देना . साधु ने कहा भगवान् वहां न तो आपको स्नान कराया जाता है न आपकी पूजा होती है न भोग लगाया जाता है . फिर भी आप वही जाना चाहते है . तब भगवान् बोले हमको वहां किसी प्रकार स्नान , भोग आदि का सुख नहीं मिलता है . लेकिन सदन कसाई के यहाँ जो लुढ़कने का सुख मिलता है . वह सबसे बढ़कर है . जब वह कसाई मीट तौलता है उस समय मुझे इधर उधर लुढ़कने से जो आनंद आता है वह सबसे बढ़कर है . और वह कसाई अपने प्रेम मन से आंसू से भजन गाते-गाते रोने लगता है वह सबसे बड़ी भक्ति है .

सुबह होते ही वह महात्मा ठाकुर जी को ले जाकर सदन कसाई के यहाँ देने आये . तो उस कसाई ने बोला की यह बहुत गंदा स्थान है . में इन्हे गंदा में रखता हूँ मीट तौलता हूँ आप इन्हे अपने साथ रखिये . तो साधु बोले भगवान् मुझे सपने में आकर कहने लगे की मुझे उसी कसाई के यहाँ छोड़ आओ . इसलिए में इन्हे लेकर वापस आया हूँ . ये बात सुनते ही उस कसाई के नेत्र से आंसू बहने लगे और हाथ-पैर कांपने लगे . भगवान् के प्रति इतना प्रेम देखकर उन्होंने सोचा की भगवान् प्रेम के बस में है . भक्त के बस में है भगवान् . फिर उस कसाई ने दुकान छोड़ दी और प्रभु को लेकर पूरी चले गए और भगवान् की दिन रात सेवा करने लगे . और अपना पूरा जीवन प्रभु को न्योछावर कर दिया .

निष्कर्ष : दोस्तों हमारी ये Bhakti Katha पोस्ट कैसी लगी ? मुझे कमैंट्स करके जरूर बताएं .

FAQs

Q. शालिग्राम भगवान कौन हैं?
Ans: भगवान् शालिग्राम विष्णु भगवान के स्वरुप है .

Q. शालिग्राम की पत्नी कौन थी?
Ans: भगवान् शालिग्राम ने माँ तुलसी से विवाह किया था .

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