
Mahashivratri Essay in Hindi: Welcome to my blogs! here we bring Mahashivratri Essay in Hindi for all class students in different formats.
महाशिवरात्रि हिन्दुओं का प्रसिद्द और लोकप्रिय त्योहारों में से एक है . यह त्यौहार हर साल फाल्गुन महीने के चतुर्दशी तिथि को बड़े ही धूम-धाम से मनाई जाती है . महाशिवरात्रि का त्यौहार देवों के देव महादेव और माँ पार्वती को समर्पित है . इस त्यौहार में भगवन भोलेनाथ और माँ पार्वती की शादी होती है . महाशिवरात्रि के दिन सभी भक्त अपने पवित्र मन से भगवान भोलेनाथ का व्रत रखते है .
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महाशिवरात्रि पर निबंध- Mahashivratri Essay in Hindi
महाशिवरात्रि पर 10 लाइन निबंध
यहाँ में महाशिवरात्रि पर 10 लाइन में निबंध लिख रहा हूँ :-
- महाशिवरात्रि पर्व को हिन्दू धर्म में सबसे व्रत (त्यौहार) माना जाता है .
- यह त्यौहार प्रत्येक साल पवित्र फाल्गुन महीने में कृष्णा पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन मनाया जाता है .
- हिन्दू धर्म के मान्यता के अनुसार यह पर्व हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता शिवजी के विवाह के उपलक्ष में मनाया जाता है .
- महाशिवरात्रि पर सभी भक्त सुबह से उपवास रखकर संध्या में शिवालय में जाकर भगवान् शिवजी को जल अर्पित करते है .
- महाशिवरात्रि का त्यौहार भारत के आलावा नेपाल, भूटान तथा म्यांमार आदि देशों में भी मनाया जाता है .
- महाशिवरात्रि के ही दिन भगवान् भोलेनाथ ने समुद्र मंथन के उपरांत निकले हुए बिष को अपने कंठ में धारण करके समस्त विश्व का कल्याण किया था .
- महाशिवरात्रि के दिन सभी शिवालयों को रंग-बिरंगी फूलों से सजाया जाता है .
- महाशिवरात्रि के सभी सुहागिन महिलाएं तथा कुंवारी कन्याएँ अपने मनचाही वर के लिए निर्जला उपवास रखकर भगवाम शिव की पूजा पुरे विधि-विधान से करती है .
- महाशिवरात्रि पर भगवान् शिव को बेलपत्र, धतूरा तथा फल का अभिषेक किया जाता है . भगवान् शिव को बेलपत्र तथा धतूरा बहुत पसंद है .
- भगवान् शिव को भांग बहुत पसंद है . भक्त उन्हें यह प्रसाद भी चढ़ाते है . और इस प्रकार पूजा संपन्न होती है .
10 lines on Mahashivratri in English
- Mahashivratri is a great Hinduism festival celebrated February months every year.
- This festival is one of the important festival .
- It is celebrated every year as per Hindu calenders Falun Months Krishna Paksha fourteen day full moon.
- As per mythology, this festival is celebrated the marriage of Lord Shiva and Goddess Parvati.
- As per mythology, it is said that lord shiva drank poison and saved the life of the world.
- On this day devotees fast and do special prayers to Lord Shiva also do Jagran and worship whole night .
- On this day all Shiva temples are decorated with colorful lights with chant Om Namah shivay.
- Pandit jee bathed shivaling with milk and ghee and water with sacred abhishek ritual.
- Mahashivratri is dedicated to Lord Shiva with great devotion.
- Bail leaves and datura and most liked by lord shiva for worship.
त्यौहार का नाम | महाशिवरात्रि |
कब मनाया जाता है ? | फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को |
किस देवता की पूजा होती है ? | भगवान् शिवजी और देवी पार्वती की |
महाशिवरात्रि कौन करता है ? | महिलाएं और कुंवारी कन्याएं |
महाशिवरात्रि कौन मनाता है ? | भारत में हिन्दू धर्म के लोग |
महाशिवरात्रि किसे कहते है ? | साल भर के 12 शिवरात्रि के संयोग को |
महाशिवरात्रि 2025 में कब है ? | 26 फरवरी दिन बुधवार को |
अनुष्ठान | उपवास, जागरण और पूजा |
महाशिवरात्रि पर निबंध-Essay on Mahashivratri
महाशिवरात्रि का त्यौहार हिन्दुओं का प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है . हिंदी केलिन्डर के अनुसार यह त्यौहार हर साल पवित्र फाल्गुन माह के कृष्णा पक्ष चतुर्दशी तिथि को आदर और श्रद्धा के साथ मनाई जाती है . यह त्यौहार भगवान् भोलेनाथ और देवी पार्वती के शादी के उपलक्ष में मनाया जाता है . ऐसी मान्यता है की महाशिवरात्रि के ही दिन सृष्टि का आरंभ भी हुई थी और भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग की उत्पति भी आज के दिन हुई थी . शिवरात्रि हर महीने में कृष्णा पक्ष चतुर्दशी तिथि को आती है और इस प्रकार पुरे साल में यह 12 होती है जबकि महाशिवरात्रि साल में एक ही बार आती है . इसलिए महाशिवरात्रि का महत्व भी बढ़ जाता है . महाशिवरात्रि का त्यौहार महिलाएं तथा कुंवारी कन्याएं करती है . महिलाएं अपने दाम्पत्य जीवन में मिठास तथा अपने पति की लम्बी आयु के लिए करती है . जबकि कुंवारी कन्याएं अपने मन वांछित वर के लिए करती है . वे दिन भर निर्जला उपवास रखती है तथा रात्रि में जागरण तथा पूजा करती है .
महाशिवरात्रि पर आधारित पौराणिक कथाएं
महाशिवरात्रि पर आधारित पौराणिक कथा में समुद्र मंथन की रोचक कहानी इस प्रकार है :
एक बार देवताओं और राक्षसों में सबसे शक्तिशाली कौन है को लेकर बहस छिड़ गई . बात इतना बढ़ गया की तू तू में में पर पहुंच गई . फिर सभी ने मिलकर भगवान् परमपिता के पास जा पहुंचे . भगवान विष्णु ने उन्हें सुझाव दिया कि देवता और राक्षस दोनों मिलकर समुद्र का मंथन करें, जिससे अमृत निकलेगा, जो शक्ति और अमरता प्रदान करता है। सागर का मंथन करने के लिए एक मथानी और एक मजबूत रस्सी की आवश्यकता थी। मथानी के लिए विशाल मंदराचल पर्वत को लिया गया, और रस्सी के लिए शक्तिशाली नाग साँप वासुकी को इस्तेमाल किया गया। और भगवान विष्णु ने विशाल कछुए का रूप धर लिया और पर्वत को अपनी पीठ पर सहारा दिया। भगवान विष्णु का यह अवतार कूर्म अवतार के रूप में जाना जाता है।
फिर समुद्र मंथन का काम शुरू हुआ . देवताओं ने वासुकी की पूँछ पकड़ी और राक्षसों ने सिर। नाग ने अपने मुँह ने बिष उगलना शुरू कर दिया जिससे कई राक्षस भी मारे गए .जैसे-जैसे वे मंथन करते गए, सागर से कई अद्भुत चीजें निकलने लगीं, सभी इच्छाओं को पूरी करने वाली कामधेनु गाय, कल्पवृक्ष जिसे इच्छा-पूर्ति वृक्ष भी कहा जाता है। फिर कीमती रत्न कौस्तुभ और धन की देवी लक्ष्मी भी प्रकट हुईं। मंथन के दौरान एक के बाद एक मूल्यवान चीजें निकल रही थीं, कि तभी समुद्र से एक भयंकर विष, हलाहल प्रकट हुआ। यह विष इतना खतरनाक था उसके निकलते ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया . सभी देवता और राक्षस चिंतित हो गए और सभी देवताओं ने मिलकर भगवान शिव से मदद की प्रार्थना की। फिर भगवान शिव ने ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिए सारा विष खुद पी गए। वो बिष इतना खतरनाक था की भगवान बीमार हो गए . फिर सभी देवताओं ने मिलकर उनके मंगल की कामना की . विष से उनका गला नीला हो गया दिया, जिससे उन्हें “नीलकंठ” नाम पड़ा . हम भगवान् भोलेनाथ को नीलकंठ के नाम से पुकारते है .
और अंत में अमृत से भरा घड़ा लेकर भगवान्प्र धन्वंतरि प्रकट हुए . इस अमृत कुंड को पाने के लिए देवताओं और असुरों में 12 दिनों तक लड़ाई चली। उस लड़ाई और खीचातानी के दौरान, अमृत कुंभ से चार बूँदें, चार अलग-अलग जगहों पर गिर गई। वे चार जगह हैं आज के प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। इन चार जगहों पर हर 12 साल बाद बारी-बारी से कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें लोग बड़ी संख्या में भाग लेते हैं, यहाँ बहने वाली पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और मोक्ष प्राप्त करने की कामना करते हैं।
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महाशिवरात्रि पर आधारित एक शिकारी की कहानी
महाशिवरात्रि पर आधारित एक शिकारी की कहानी है जो अद्भुत है. एक बार की बात है भगवान् भोलेनाथ और माँ पार्वती कैलाश पर्वत पर बैठे थे तो माँ पार्वती ने भगवान् भोलेनाथ से पूछ बैठी की स्वामी की ऐसा कौन सा श्रेष्ठ पूजा है जिससे मृत्य लोक के प्राणी आपको प्राप्त कर सकते है . तो भगवान् भोलेनाथ ने उन्हें शिवरात्रि का व्रत बताया . तो आइए इस पर आधारित शिकारी की अद्भुत कहानी पढ़ते है .
प्राचीन काल में चित्रभानु नाम का एक भील शिकारी रहता था . वह शिकार करके अपने परिवार और बच्चो का पेट पालता था . उसने एक साहूकार से कर्ज ले रखा था . लेकिन वह शिकारी उस साहूकार का कर्जा नहीं चूका पा रहा था . तो क्रोधित होकर साहूकार के आदमियों ने उसे पकड़कर ले गया और गांव के बाहर एक शिवमठ था जिसमे उसे ले जाकर बंद कर दिया था . संयोग से उस दिन शिवरात्रि का त्यौहार था तो वहां दिनभर भजन कीर्तन और रत को जागरण और भगवान् शिवजी की आरती और कथा चलती रही . उस भील ने वही से ध्यानमग्न होकर भगवान् के भजनं-कीर्तन , कथा तथा जागरण को सुनता रहा . उस भील ने शिवरात्रि की समस्त कथा पुरे ध्यान से सुना .
ज्योही शाम हुई वहां साहूकार आया और उसने पूछा की मेरा पैसा कब तक देगा ? तो उस भील शिकारी ने जवाब दिया की अगले महीने तक आपका सारा कर्जा चूका दूंगा . फिर साहूकार ने उसे छोड़ दिया . वह शिकारी दिन भर भूखा था और खाली हाथ घर कैसे जाऊंगा . इसलिए वह अपनी दिनचर्या की भांति जंगल में शिकार के लिए निकल पड़ा . शिकार की खोज में वह बहुत दूर निकल गया . और अँधेरा भी हो गया था . तो उसने रात बिताने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गया . वहां एक तालाब था और उसके एक बेल-वृक्ष पर चढ़कर वह रात बीतने का इंतजार करने लगा .
उस बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बेलपत्रों से ढका हुआ था यह बात शिकारी को पता नहीं था . वो शिकारी रात भर अपने मन ही मन में सोचता रहा और बेल पत्र को तथा उनके टहनियाँ तोड़ तोड़कर नीचे गिराते रहा . संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे रहने से शिकारी का उपवास का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। रात्रि के एक पहर बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब मार लेना।’ शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगल में झाड़ियों में लुप्त हो गई। प्रत्यंचा ढीली करने तथा चढ़ाने के वक्त कुछ बेल-पत्र अपने आप टूटकर नीचे गिर कर शिवलिंग पर चढ़ गए . इस प्रकार उस भील शिकारी से जाने अनजाने में प्रथम पहर का पूजा भी हो गया .
कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। अपने शिकार को देखकर शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे शिकारी ! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। और कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।’ शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार अपने शिकार को छोड़कर शिकारी परेशान हो गया . वह चिन्ता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी कुछ बेल-पत्र टूटकर नीचे शिवलिंग गिरा. और इस प्रकार दूसरे पहर का पूजा भी पूरा हो गया .
तभी एक अन्य हिरणी अपने सभी बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, ‘हे शिकारी !’ मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके शीघ्र लौट आऊँगी। इस समय मुझे मत मारो . इस पर शिकारी हँसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में हिरणी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे शिकारी ! मेरा विश्वास करो , मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरन्त लौट आउंगी . हिरणी का करुण स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। और उसे भी जाने दिया।
शिकार के अभाव में बेल-वृक्षपर बैठा-बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट हिरण उसी तालाब पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर हिरण विनीत स्वर में बोला, हे शिकारी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन हिरणियों तथा उनके छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में जरा भी विलम्ब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊँगा।
हिरण की बात सुनते ही शिकारी के सामने रात का पूरी घटनाचक्र दिमाग में आ गया, उसने सारी कथा हिरण को सुना दी। तब हिरण ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वास करके छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित हो जाउंगी . शिकारी ने उस हिरण को भी जाने दिया . सुबह भी हो गई थी . और उस शिकारी के द्वारा अनजाने में उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेल-पत्र चढाने से शिवरात्रि का त्यौहार पूर्ण हो गया . उसका फल उसे तुरंत मिल गया . शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से अपने आप ही छूटकर निचे गिर गया . भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।
थोड़ी ही देर बाद वह हिरण सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किन्तु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवम् सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की धारा बह निकली । उस हिरण के परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा कर सदा के लिए कोमल एवम् दयालु बन गया . देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा हिरण परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।
महाशिवरात्रि का महत्व
महाशिवरात्रि का त्यौहार का फल अचूक है और तुरंत मिल जाता है जैसे शिकारी को मिला . आपका मन पवित्र और निर्मल हो जाता है . परोपकार के लिए भी महाशिवरात्रि का त्यौहार उत्तम है . पुराणों के शिवरात्रि पूजन का चार तरीके बताएं गए है जैसे: मासिक शिवरात्रि, प्रथम आदि शिवरात्रि, महाशिवरात्रि तथा नित्य शिवरात्रि . अर्थात प्रत्येक रात्रि ही शिवरात्रि है . जो कल्याण मार्ग का अनुसरण करे वही सच्चा शिवरात्रि है .