Gangaur Festival Vrat: प्रसिद्ध गणगौर फेस्टिवल की महिमा एवं जुड़े क्विज

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Gangaur Festival Vrat: प्रसिद्ध गणगौर फेस्टिवल की महिमा एवं जुड़े क्विज
Gangaur Festival Vrat:

Gangaur Festival Vrat: Welcome to my blogs! here we learn about the Gangaur Festival and its significance and importance in our life Gangaur Festival Vrat in Hindi.

Gangaur Festival kya hai

प्रसिद्द गणगौर फेस्टिवल को त्यौहार राजस्थान में बहुत ही धूम-धाम से मनाई जाती है . -यह त्यौहार भगवान शिवजी और देवी पार्वती को समर्पित है . गणगौर फेस्टिवल को गौरी पूजा भी कहते है . इस त्यौहार को घर की महिलाएं तथा कुंवारी कन्याएं ही करती है . इसलिए इस त्योहार को अखंड सुहाग का पर्व भी कहा जाता है .

गणगौर फेस्टिवल कब मनाई जाती है ?

गणगौर फेस्टिवल पवित्र चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. इस साल 2025 में यह दिन 15 मार्च सोमवार के दिन आता है . इस फेस्टिवल भगवान् शिव और देवी पार्वती का प्रेम प्रसंग के लिए मनाया जाता है . गणगौर को तृतीया तीज के नाम से भी जाना जाता है .गणगौर शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है “गण” अर्थात भगवान शिव और “गौर” यानि देवी पार्वती के योग से बना है यानि यह त्यौहार भगवान् शंकर और देवी पार्वती को समर्पित त्यौहार है . इस त्यौहार में महिलाएं अपने घरों में मिट्टी की गण और गौरी की मूर्तियों को स्थापित करते है और उनकी पूजा करती हैं. कुंवारी कन्याएं भी इस व्रत को रखती हैं ताकि उन्हें अच्छे और सुयोग्य वर मिले . विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए इस व्रत को रखती हैं. तथा महिलाएं मेहंदी से अपने हाथों और पैरों को अलग अलग तरीके से सजाती हैं. और त्यौहार के अंतिम दिन गण और गौरी की मूर्तियों को किसी तालाब या नदी में विसर्जित कर दिया जाता है.

गणगौर त्यौहार क्यों मनाया जाता है?

ऐसी मान्यता है की भगवान् शिव और माता पार्वती का मिलान गणगौर के ही दिन हुआ था . इसलिए गणगौर फेस्टिवल भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन का जश्न मनाने के लिए मनाया जाता है. यह त्योहार वैवाहिक सुख का प्रतीक है. गणगौर फेस्टिवल राजस्थान का एक प्रमुख त्योहारों में से एक है. इसे गौरी तृतीया के नाम से भी जाना जाता है. ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन देवी पार्वती ने अपनी उंगली से रक्त निकालकर महिलाओं को सुहाग बांटा था. इन्ही सब कारणों से यह त्यौहार मनाया जाता है .साथ ही इस दिन महिलाएं इस त्यौहार पर भगवान शिव और माता पार्वती की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा करती हैं और अंतिम दिन में नदी या तालाब में विसर्जन कर दिया जाता है .

गणगौर फेस्टिवल पर आधारित पौराणिक कथाएं

एक समय की बात है भगवान शिव और देवी पार्वती पृथ्वी भ्रमण पर निकले . रस्ते में उसे देवऋषि नारद जी से भेट हुई . भ्रमण करते हुए वे किसी गांव में पहुंचे . उस दिन संयोग से चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी। इस तिथि को गौरी तृतीया के नाम से भी जाना जाता है। जब ग्राम वासियों को पता लगा कि भगवान शिव और देवी पार्वती के साथ गांव में पधारे हैं तो गांव के सभी महिलाएं जल फूल और फल के साथ भगवान शिव और देवी पार्वती की सेवा में पहुंचे।

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लेकिन गांव में कुछ निर्धन महिलाओं ने भी भगवान की पूजा सच्चे मन से की . और सच्चे मन से किया गया हमेश भगवान् प्रसन्न होते है . देवी पार्वती और भगवान शंकर उन निर्धन महिलाओं की सेवा और भक्ति-भाव से आनंदित हुए। देवी पार्वती ने उस समय अपने हाथों में जल लेकर उन निर्धन महिलाओं पर सुहाग रस छिड़क दिया। देवी पार्वती ने उन निर्धन महिलाओं से कहा कि तुम सभी का सुहाग अटल रहेगा। उन निर्धन महिलाओं के चले जाने के बाद उस गांव की कुछ धनी महिलाओं भी आई जो हाथों में विभिन्न प्रकार के पकवान सजाकर शिव पार्वती की सेवा करने आईं। धनी महिलाओं से प्रसन्न होकर देवी पार्वती उन्हें भी सुहाग रस देनी चाही . लेकिन उनके पास अब सुहाग रस नहीं बचा था . तब वे भगवन की ओर देखने लगी . तब देवी पार्वती की ओर देखकर भगवान शिव ने कहा कि, तुमने तो सारा सुहाग रस निर्धन महिलाओं में बांट दिया है अब इन्हें क्या दोगी। देवी पार्वती ने तब भगवान शंकर की ओर देखकर कहा कि उन निर्धन महिलाओं को मैंने ऊपरी सुहाग रस दिया है। इन धनी महिलाओं को मैं अपने समान सौभाग्य का आशीर्वाद दूंगी। इसके बाद देवी पार्वती ने अपनी एक उंगली को काटकर उससे निकलने वाले रक्त को सभी धनी महिलाओं के ऊपर छिड़क दिया। जिसके ऊपर जैसा रक्त गिरता गया उसे उतना सुहाग मिलता गया। इस तरह देवी पार्वती ने चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को निर्धन और धनी महिलाओं को भी सुहाग वांटा था।

ततपश्चात देवी पार्वती भगवान शिव से आज्ञा लेकर नदी पर स्नान करने चली गईं। स्नान करने के बाद देवी पार्वती ने बालू के ढेर से एक शिवलिंग का निर्माण किया और उसकी पूजा की। पूजा के बाद देवी पार्वती ने शिवलिंग की प्रदक्षिणा भी की। तुरंत उस शिवलिंग से भगवान् शिवजी प्रकट हुए और देवी पार्वती से कहा कि आज के दिन यानी चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन जो भी सुहागन महिलाएं शिव और गौरी पूजा पुरे विधि-विधान से करेगी उसे अटल सुहाग का वरदान प्राप्त होगा। इधर शिवजी की पूजा करते हुए देवी पार्वती को काफी समय हो गया तो वह लौटकर वहां आई जहां पर शिवजी विराजमान थे। देवी पार्वती से भगवान भोलेनाथ ने पूछा कि काफी समय लग गया आने में। तो देवी पार्वती ने इस पर यह कह दिया कि उन्हें नदी के तट पर भाई और भावज मिल गए थे। aur स्वागत में उन्होंने दूध भात खिलाया। भगवान शिवजी समझ गए कि देवी पार्वती उन्हें बहला रही हैं। इस पर शिवजी ने भी कहा कि वह देवी पार्वती के भाई भावज से मिलेंगे और दूध भात खाएंगे। शिवजी देवी पार्वती और नारदजी के साथ नदी तट की ओर चल पड़े। देवी पार्वती ने मन ही मन भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना की, हे भोलेनाथ मेरी बात का लाज रखना।

जब भगवान भोलेनाथ नदी के तट पर पहुंचे तो उन्हें वहां एक महल दिखाई दिया . उसमें देवी पार्वती के भाई और भावज थे। कुछ समय तक शिव और पार्वती उस भवन में रहे। फिर देवी पार्वती ने भगवान शिव से कैलाश पर्वत चलने की जिद्द करने लगी . लेकिन शिवजी जाना नहीं चाह रहे थे तो देवी पार्वती अकेले ही वहां से विदा हो गई। इस पर भगवान शिव को भी देवी पार्वती के साथ जाना पड़ा। अचानक से भगवान शिव ने कहा कि उनकी तो माला वहीं भवन में रह गई है। जब भगवान् भोलेनाथ ने नारद मुनि को अपनी माला लाने के लिए भेजा। नारदजी जब नदी तट पर पहुंचे तो वहां उन्हें न तो भवन दिखा न देवी पार्वती के भाई भावज . उन्हें एक पेड़ पर भगवान शिव का माला लटका हुआ मिला। तब नारदजी माला लेकर शिवजी के पास गए और माला देकर बोले प्रभु यह कैसी आपकी माया है जब मैं माला लेने गया तो वहां पर भवन नहीं था और न ही देवी पार्वती के भाई भावज. बस जंगल ही जंगल था। एक पेड़ पर आपका माला लटका मिला। इस पर शिव पार्वती मुस्कुराए और बोले कि यह सब तो देवी पार्वती की माया थी। इस पर देवी पार्वती ने कहा कि यह मेरी नहीं भोलेनाथ की माया थी। नारदजी ने कहा कि आप दोनों की माया आप दोनों ही जानें। आप दोनों की जो भक्ति भाव से पूजा करेगा उनका प्रेम भी आप दोनों जैसा बना रहेगा। और उनके दाम्पत्य जीवन में हमेश खुशिया भरी रहेगी . उसका सुहाग अटल और अखंड रहेगा .

FAQs

Q. गणगौर उत्सव कब मनाई जाती है ?
Ans: चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि.

Q. गणगौर उत्सव किस देवी-देवता को समर्पित है ?
Ans: गणगौर फेस्टिवल भगवान् शिवजी और देवी पार्वती को समर्पित है .

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