
Sheetala Ashtami kab hai: Welcome to my blog. In this post, we learn about the religious story of Sheetala Ashtami kab hai, Shhetala Mata vrat katha, in full detail. In this post, we describe the legend of the story about Sheetala Ashtami kab hai in Hindi.
माँ शीतला कौन थी ?
हिन्दू धर्म के अनुसार माँ शीतला माँ पार्वती का ही एक रूप माना गया है . शीतला माता को आरोग्य की देवी कहा गया है . जिस प्रकार आरोग्य के देवता के रूप में भगवान् धन्वंतरि है. नवरात्री पर देवी पार्वती के हम नौ रूपों का वर्णन जानते है , उसी प्रकार शीतला माता भी उनका ही रूप है . शीतला देवी को हिन्दू धर्म में स्वच्छता तथा आरोग्य की देवी कहा जाता है .शीतला माता का वाहन चेचक , घाव, घुन, फुंसी और बीमारियों को ठीक करती हैं और सबसे सीधे चेचक की बीमारी से जुड़ी हैं।
शीतला अष्टमी का त्यौहार कब है ?( Sheetala Ashtami kab hai)
हिंदी कैलेंडर के अनुसार शीतला अष्टमी का त्योहात पवित्र चैत्र माह के कृष्णा पक्ष के अष्टमी तिथि को मनाई जाती हैं . शीतला अष्टमी का त्यौहार होली के आठवें दिन मनाई जाती है . और साल 2025 में यह तिथि 22 मार्च शनिवार के दिन होगा . जो श्रद्धालु इस दिन माँ शीतला की पूजा पुरे विधि-विधान से करते है उनके घर में आरोग्य की प्राप्ति होती है तथा मनवांछित फल की प्राप्ति होती है . . शीतला अष्टमी व्रत को बासोड़ा भी कहते है . और इस दिन बासी भोजन करने का प्रावधान है . और ऐसी मान्यता है की इस दिन बासी भोजन का भोग लगाया जाता है और इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से चेचक, खसरा आदि रोगों से मुक्ति मिलती है .
शीतला अष्टमी क्यों मनाई जाती है?
पार्वती माँ के नवरात्री में हमने कई रूपों के बारे में जाना है . और माँ शीतला उन्ही पार्वती माता के ही अवतार है . और वे आरोग्य की देवी है स्वच्छता की देवी है . और शीतला अष्टमी व्रत बिमारियों से बचाव तथा रक्षा के लिए ही किया जाता है . ऐसी मान्यता है की इस दिन माँ शीतला की पूजा अर्चना पुरे विधि-विधान से करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है तथा रोगों से निजात मिलती है . जीवन में सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है . संतान से जुड़े कष्ट दूर होते है .
माँ शीतला के बारे में संक्षिप्त वर्णन
त्यौहार का नाम | शीतला अष्टमी व्रत |
किस देवी/देवता को समर्पित है ? | शीतला माता |
किस धर्म के लोग मनाते है ? | हिन्दू धर्म |
किनके अवतार है ? | माँ पार्वती |
कब मनाया जाता है ? | चैत्र माह के अष्टमी तिथि कृष्णा पक्ष |
किस त्यौहार के बाद मनाया जाता है ? | होली के बाद |
देवी है ? | स्वच्छता और आरोग्य की |
अन्य नाम | बसौड़ा, आरोग्य की देवी, |
प्रसाद होता है . | बासी भोजन |
पुजारी होता है . | कुम्हार |
शीतला महा का वाहन | गर्दभ |
शीतला अष्टमी पूजन विधि
शीतला अष्टमी का दिन शनिवार को है . इस दिन सुबह उठकर नित्य-क्रिया से निपटकर स्नान करे और स्वच्छ वस्त्र धारण करें . माँ के पूजन के चौका लगाए या प्रतिमा रखें फिर थाली सजाएँ और व्रत का संकल्प ले . एक थाली में बासी भोजन को प्रसाद के रूप में रखें तथा दूसरे थाली में पूजा के समान जैसे; दीपक, रौली चन्दन, अक्षत , सुंदर, सिक्का, फूल, फल आदि रखें . ततपश्चात शीतला माता का कथा पढ़ें और उन्हें भोग लगाएं .
शीतला अष्टमी पर आधारित पौराणिक कथाएं
एक बार की बात है शीतला माता चैत्र माह में ही धरती पर अवतरण हुई.उसने सोचा की देखते है कौन भक्त मुझे याद करता है . यही सोचकर शीतला माता धरती पर आई . संध्यां का समय था सभी लोग अपने अपने घरों में थे . शीतला माता ने देखा की इस गाँव में मेरा कोई मंदिर नहीं है, और ना ही मेरी पूजा हो रही है. माता शीतला गाँव की गलियों में घूम रही थी, तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी यानि जिसे मांड कहते है . निचे फेकना चाहा लेकिन उसने माँ के ऊपर ही फेक दिया . वह माड़ का पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में फफोले/छाले निकल आये . माता शीतला के ऊपर गरम पानी गिरने से पूरे शरीर में जलन होने लगी।
शीतला माता दर्द से गाँव में इधर-उधर भागने लगी और चिल्लाने लगी अरे में जल गई, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा है। कोई मेरी सहायता करो। लेकिन उस गाँव में किसी ने शीतला माता की सुध नहीं ली . लेकिन उसी गांव में अपने घर के बाहर एक कुम्हारन महिला बैठी थी। उस कुम्हारन ने देखा कि एक बूढी माई दर्द से चिल्ला रही है . उसे दया आ गई और कहा अरे यह बूढी माई तो बहुत जल गई है। इसके पूरे शरीर में तपन है। इसके पूरे शरीर में फफोले पड़ गये है। यह तपन सहन नहीं कर पा रही है। तब उस कुम्हारन ने कहा हे माँ! तू यहाँ आकार बैठ जा, मैं तेरे शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालती हूँ। उस कुम्हारन ने उस बूढी माई पर खूब ठंडा पानी डाला और बोली हे माँ! मेरे घर में रात की बनी हुई रबरी रखी है थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा लें। जब बूढी माई ने ठंडी ज्वार के आटे की राबड़ी और दही खाया तो उसके शरीर को ठंडक मिली।
फिर उस कुम्हारन ने उस बूढी माई से कहा – आ माँ बैठजा और तेरे सिर के बाल बहुत बिखरे हैं, ला मैं तेरी चोटी गूँथ देती हूँ। और फिर उस कुम्हारन ने माई की चोटी गूथने हेतु और कंघी करने लगी । फिर अचानक कुम्हारन की नजर उस बूढ़ी माई के सिर के पीछे भाग में पड़ी, तो कुम्हारन ने देखा कि एक आँख बालों के अंदर छुपी हुई है। तीसरी आँख देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी तभी उस बूढ़ी माई ने कहा – रुक जा बेटी तू डर मत। मैं कोई भूत-प्रेत नही हूँ। मैं शीतला देवी हूँ मैं तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन याद करता है। कौन मेरी पूजा करता है। इतना कहकर माता चारभुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्णमुकुट धारण किये अपने असली रुप में प्रगट हो गई। माता के विराट स्वरुप का दर्शन कर कुम्हारन सोचने लगी कि अब मैं गरीब माता को कहाँ बिठाऊ। तब माता बोली – हे बेटी! तुम किस सोच मे पड गई। तब उस कुम्हारन ने हाथ जोड़कर आँखो में आँसू बहते हुए कहा – हे माँ! मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता बिखरी हुई है। मैं आपको कहाँ बिठाऊ। मेरे घर में ना तो चौकी है, ना बैठने का आसन ही।
शीतला माता ने उस कुम्हारन का प्रेम को देखकर प्रसन्न होकर उस कुम्हारन के घर पर खड़े हुए गधे पर बैठ कर एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर उस कुम्हारन के घर की दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फैंक दिया। और उस कुम्हारन से कहा – हे बेटी! मैं तेरी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हूँ, अब तुझे जो भी चाहिये मुझसे वरदान के रूप में मांग लो। तब कुम्हारन ने हाथ जोड़ कर माँ से कहा – हे माता मेरी इच्छा है अब आप इसी डुंगरी गाँव मे स्थापित होकर यहीं निवास करें और जिस प्रकार आपने मेरे घर की दरिद्रता को अपनी झाड़ू से साफ कर दिया। ऐसे ही आपको जो भी भक्त होली के बाद सप्तमी तिथि को भक्ति-भाव और पुरे विधि-विधान से पूजा कर, अष्टमी के दिन आपको ठंडा जल, दही व बासी ठंडा भोजन चढ़ाये उसके घर की दरिद्रता को दूर करना एवं आपकी पूजा करने वाली महिला का अखंड सुहाग रखना, उसकी गोद हमेशा भरी रखना। साथ ही जो पुरुष शीतला अष्टमी को नाई के यहाँ बाल ना कटवाये धोबी को कपड़े धुलने ना दें और पुरुष भी आप पर ठंडा जल चढ़ाकर, नरियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार मे कभी दरिद्रता ना आये.
तब माता बोलीं तथास्तु! हे बेटी! जो तूने वरदान मांगे हैं मैं सब तुझे देती हूँ। हे बेटी! तुझे आर्शिवाद देती हूँ कि मेरी पूजा का मुख्य अधिकार इस धरती पर सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। तभी उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गई और उस गाँव का नाम हो गया शील की डुंगरी। शील की डुंगरी भारत का एक मात्र मुख्य मंदिर है। शीतला सप्तमी के दिन यहाँ बहुत विशाल मेला लगता है।
FAQs
Q. शीतला अष्टमी की पूजा कब की जाती है?
Ans: चैत्र महीने के कृष्णा पक्ष के अष्टमी तिथि को
Q. 2025 में बसेड़ा कब है?
Ans: 2025 में बसेड़ा यानि शीतला अष्टमी 22 मार्च शनिवार के दिन है .
Q. होली के बाद शीतला अष्टमी कब है?
Ans: होली के एक सप्ताह बाद में